Friday, October 7, 2016

*рдЪрд░рдг рдкрдб़ूँ рд╣े рдоाрдд рддुрдо्рд╣ाрд░े!*

चरण पड़ूँ हे मात तुम्हारे!

भवप्रीता, कल्याणी माँ के शरण शीघ्र मन जा रे!
अगणित रूप नाम हैं अगणित अगणित रंग तुम्हारे!
कलुष रूप दानव निशुम्भ अरु, अति कराल महिषासुर मारे।
तुम्हीं सारदा, ब्रह्मचारिणी, कण-कण बसती माँ रे!
कण-कण है प्रतिरूप तुम्हारा, हम हैं सहारे।
जब भूला तेरे स्वरूप को, जीवन-तत्व बहा रे!
तृष्णा, श्रद्धा,रौद्र रूप तू, सत-चित-आनन्द माँ रे!
सत्यवीर है शरण तुम्हारे शक्ति उसे दे माँ रे!

अशोक सिंह सत्यवीर
(भक्ति काव्य - दुर्गाम्बरी से)

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