* ऐसी दीपावली मने *
हृदय भरा हो मृदु भावों से, मानस में अनुराग बने।
ऐसी दीपावली मने।।१।।
अविरल निस्पृहता ही घृत हो,
सहज यत्न की ज्योति जले।
वीतरागता की बाती हो,
नित प्रसन्नता राशि फले।
सद्गुण दीपक बनें घने।।२।।
उठें हृदय से तेज भाव जो,
कर्म-वचन से मुखरित हों।
प्रेय प्रकट हो सहज टेक पर,
श्रेय कर्म में रत नित हो।
वज्र बने आह्लाद सनातन, मुदिता, दुख पर आज तने।।३।।
हृत्तन्त्री में राग स्नेह का उठे,
कि मानस मधुरिम हो।
गतिमयता में प्रीति सहज हो,
पथ ज्योतित हो, या तम हो।
पथझड़ में मधुमास सरीखा, द्वंद्वहीन आह्लाद बने।।४।।
'सत्यवीर' उत्सव सार्थक हैं,
जब मानस आह्लाद गहे।
हृदय जगत की जड़ता टूटे,
नवल राग की धार बहे।
जागृति दीप जलें ऐसे कि, पुन: तिमिर में पग न सने।।५।।
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अशोक सिंह सत्यवीर
(गीत संग्रह - स्वर लहरी यह नयी-नयी है )
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