* मेरा भारत *
जिसका महत् उदधि-दल, है चरण धो रहा नित।
अविचल, अखण्ड, गर्वित, जिसका किरीट नगपति।
दैदीप्यमान जिसकी गाथा, अतुल्य जग में ।
जो भुवन का शिरोमणि, ब्रह्माण्ड- मध्य शोभित।
स्वाभिमान-सिक्त जिसका, इतिहास प्रज्ज्वलित है।
मेरा है वही भारत, मेरा है वही भारत।।१।।
वैरी समक्ष झुकना, उपजीव्य नहीं जिसका,
है दया- धर्म, जिसका उपधान जगविदित है।
जो धैर्य का महोदधि, सुख- शान्ति का पुजारी,
जिसमें सदैव स्थित, वीरत्व असीमित है।
जिसका 'अनख', अनल, 'हृत', अनुपम करुण- कलित है।
मेरा है वही भारत, मेरा है वही भारत।।२।।
स्मृति में जिसके, ज्यातिर्मय ज्ञान गूँजता है,
ब्रह्माण्ड वेग की, श्रुति, सोपान गूँजती है।
वत्सर अनन्त भुवि का, नेतृत्व किया जिसने,
जिसको अतीत से ही, नित सृष्टि पूजती है।
है तनी जब भृकुटि, जग-गति हुई स्खलित है।
मेरा है वही भारत, मेरा है वही भारत।।३।।
श्रृंगार कर रही है, अनुपम प्रकृति, अहर्निश,
प्यारा, प्रमन, मनोहर, आदर्शसिक्त उन्नत।
थी गूँजती जहाँ पर, संस्कृत- पवित्र- वाणी,
जग-श्रेष्ठ जो धरित्री, ऋषि-भूमि, विश्व- विश्रुत।
सौन्दर्यमयी, अनुपम, वह जो वसूमती है।
मेरा है वही भारत, मेरा है वही भारत।।४।।
करना प्रधर्ष अरि पर, कुपरम्परा नहीं है,
है क्षमा-भाव अनुपम, जिस पर सदैव छाया।
संसृति जहाँ प्रथमत:, नवरूप लिए आयी,
जिसने समस्त जग को, अनुपम सुपथ दिखाया।
जो असीमित पराभव पर, आत्म-सम्बलित है।
मेरा है वही भारत, मेरा है वही भारत।।५।।
नित 'सत्यवीर' बंधन में मुक्ति-सूत्र रक्षित,
यह शोध हैं यहीं का, सद्भावना सुरक्षि।
वीणा पुकारती है, जब दुष्ट विनसते हैं;
जब रौद्र भाव में हो, शुभकामना विवक्षित।
जो नित्य दंद्व में भी, आह्लादमय अमित है।
मेरा है वही भारत, मेरा है वही भारत।।६।।
रचयिता- अशोक सिंह 'सत्यवीर'
( सामाजिक चिंतक, साहित्यकार और पारिस्थितिकीविद )
(रचना का समय: २१ /०१/२०००)
{पुस्तक- "यह मस्तक है कुछ गर्व भरा" }
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