* कसौटी पर कविता *
एक सामान्य धारणा है कि कवि प्रशंसा और प्रोत्साहन का प्यासा होता है, इस बात का समर्थन करने वाली घटनाऐं अक्सर मिलेंगी आपको।
किसी कवि की कविता की प्रशंसा करके आप आसानी से उसे प्रसन्न कर सकते हैं। यदि कवि को लग जाये कि कोई उसकी रचना का मुरीद है, तो कवि उस व्यक्ति को चाय-पानी मुफ्त में कराता है। अपनी कविता सुनाने की धुन में वह भूल जाता है कि सामने वाला उससे कब का ऊब चुका है। श्रोता को विदा करते-करते भी चार पंक्तियाँ वह सुना ही देता है।
वास्तव में प्रशंसा के लिए आकुल कवि वही हैं जो तुक और लय जोड़कर कविता लिखने प्रयास करते हैं। जिन्हें नहीं पता कि कविता दैवीय उपहार है। परमात्मा की नैसर्गिक देन है। कोशिश करके रची गयी कविता प्रशंसा चाहती है, प्रोत्साहन चाहती है, अपने को पूर्ण मानती है। ऐसी कविताऐं ही पुरस्कार के लिए आकुल होती हैं। यह कविताऐं प्रयत्न का फल हैं, आपात अवतरण नहीं।
ऐसा कवि बार - बार बल देगा कि आप उसकी पंक्तियों पर गौर करें। उसे ऐसा कहना पडे़गा ही, अवश्य कहना पडे़गा क्योंकि हजारों रचनाओं की भीड़ में उसकी कविता को कोई क्यों पूछेगा?
मेरा अपना अनुभव है कि कविता स्वतः फूटती है; कलम विवश हो जाती है उसे लिपिबद्ध करने के लिए। कविता का स्वयं का एक दर्शन होता है, और यह खुद-ब-खुद व्यक्त हो जायेगा।
रचनाकार को रचना के समय ही जो मिलना है मिल जाता है, पर्याप्त मात्रा में कि फिर नहीं कुछ चाहिए उसे।
कबीर, सूर, रैदास, रज्जब जैसे कवियों ने कहां से सीखा कविता करना? हजारों बेजोड़ रचनाऐं दीं इन्होंने। यदि आप ऐसे रचनाकार से मिलें, तो आप धन्य हो जायेंगे, क्योंकि ये सच्चे अर्थों में मानव थे।
वास्तव में कविता दैवीय प्रस्फुरण है, यह प्रस्फुरण किसी भी हृदय में हो सकता है। जब कविता फूटती है तो वह खुद ही अपना व्याकरण और छन्द लेकर आती है। वास्तविक कविता खुद तय करती है कि उसे किस छन्द में प्रकट होना है। कविता जब मचलती है तो खुद ही दोहे, सोरठे, चौपाई और कवित्त बन जाते हैं। ऐसा अनुभव अगर आपको नहीं है, तो अभी आप कवि नहीं।
जो कवि होगा, वह अति प्रशंसा से दूर रहना चाहेगा। रचना होने के बाद नैसर्गिक कवि को खुद कई बार आश्चर्य होता है कि उसने कैसे रचा इतना सब? नैसर्गिक कविता को प्रमाणपत्रकी जरूरत नहीं है, उसका अवतरण ही इस बात का प्रमाण है कि वह कविता है, उसका आपात प्रस्फुरण उसमें स्वयं रसों का समन्वय लेकर आता है।
कविता मात्र कविता है, न वह कठिन है और न ही आसान। उसे जिस रूप में आना था वह आ चुकी। वह स्वयं अपने प्रकाशन का मुहूर्त लेकर आती है, उसे फिक्र नहीं कि कौन उसकी प्रशंसा करेगा? उस कविता से जिसे रसास्वादन लेना है ले लेगा, जिस हृदय को आन्दोलित होना है, हो जायेगा।
कविता जिस हृदय में उतरती है, वह हृदय धन्य है, जिस जिह्वा से फूटती है, वह जिह्वा धन्य है और जिस युग में पदार्पण करती है वह युग धन्य है। कवि स्वागत करना चाहता है तमाम कवियों का और सभी कवियों की रचनाओं का आस्वाद लेकर स्वयं को आह्लादित अनुभव करता है।
कवि को नहीं पता कि किस घड़ी कविता उतरेगी उसके हृदय में, कवि धैर्य से प्रतीक्षा करता है रचना के अगले चरण के आगमन की या नयी कविता के फूटने की। उसे लय-तुक मिलाने के लिए माथापच्ची करने की जरूरत नहीं है । कविता उतरने वाली है, और कवि की कलम प्रतीक्षा में है। यदि यह अनुभव नहीं आपको तो आप कवि हैं नहीं, बल्कि कवि बने हैं। कवि बना थोड़े ही जाता है।
☆ अशोक सिंह सत्यवीर
(निबंध-- " काव्य-कसौटी" से )
No comments:
Post a Comment