Tuesday, January 17, 2017

* भारतवर्ष महान *

* भारतवर्ष महान *

उत्तर में हिमगिरि से लेकर,
दक्षिण में विशाल सागर तक।
विविध पक्षधारी, पर सबमें-
सदा एकता का आराधक।
शून्य-सृष्टि से ज्ञान-दृष्टि तक, विस्तृत रहा वितान।
भारतवर्ष महान।।१।।

मानस में तरुणाई छाये,
सत्साहस अब गरिमा पाये।
बिखरी शक्ति करो एकत्रित,
जड़ता पर गतिमयता धाये।
पुष्टवीर्यता के साक्षी हों, ऊर्जस्वित हो प्राण।।
भारतवर्ष महान।।२।।

अपनी संस्कृति के ध्वज वाहक,
परसंस्कृति पर टूटे नाहक।
जिस संस्कृति पर दृष्टि विश्व की,
तुम न स्वयं उसके आराधक।
सामासिकता के प्रहरी हम, प्यारा हिन्दुस्तान।
भारतवर्ष महान।।३।।

धर्म, जाति, भाषा, परिधान,
हैं विभिन्न सारे अभिधान।
भरी विविधता से यह धरती
एकसूत्र में लय, सम मान।
अभिलाषा हम सबकी, जागे, इस धरती का मान।
भारतवर्ष महान।।४।।

'सत्यवीर' उन्मेषमुखी गति,
धरो हृदय में, शुभ विचार रख।
आत्मोन्नति का लक्ष्य हृदय में,
पहचानो मन दर्पण सम्मुख।
उपनिषदों की शुभ वाणी से,किया जगत कल्याण।
भारतवर्ष महान।।५।।

रचयिता - अशोक सिंह सत्यवीर
( सामाजिक चिंतक, साहित्यकार और पारिस्थितिकीविद )
उपसंपादक - भारत संवाद
(पुस्तक - "यह मस्तक है कुछ गर्व भरा" )

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