* विरह लिए अब हृदय पुकारे *
मादक लघु आघात हृदय पर,
रह-रहकर अब शांति बुहारे।
बिछुड़न का संताप अनूठा, विरह लिए अब हृदय पुकारे।।१।।
प्रिया मिली जब, आशा उपजी,
सुख शायद जीवन में आये।
कुम्हलाया जो हृदय, पुन: से-
उछले मानों नव निधि पाये।
किन्तु हाथ से कली खो गयी, फूल कहाँ कब हाथ लगा रे!
बिछुड़न का संताप अनूठा, बिरह लिए अब हृदय पुकारे।।२।।
दुनिया की अवरोधी धारा,
मर्यादा का अप्रिय बंधन।
तोड़ नहीं पाते जब प्रेमी,
भरे हृदय में घुटन सघन।
बली नियति पर सौंप, शांत हों, या स्वघात के बहें पनारे।
बिछुड़न का संताप अनूठा, विरह लिए अब हृदय पुकारे ।।३।।
क्रांति घटित होगी किस तट पर,
जबकि प्रेम के घाती सब?
जाने कब आयेगा वह युग,
प्रेमीहित भी होंगे उत्सव?
कब बसंत के पल आयेंगे, रुक जायें आँखों के धारे।
बिछुड़न का संताप अनूठा, विरह लिए अब हृदय पुकारे।।४।।
बदल रहीं सब परिभाषाऐं,
'सत्यवीर' दिख रहा सुधाकर।
प्रेम बना वरदान, सिद्ध है,
हृदयों के अब बदले सब स्वर।
विरह मिलन का रूप दूसरा, प्रेमसिद्धि में सब कुछ हारे।
बिछुड़न का संताप अनूठा, विरह लिए अब हृदय पुकारे ।।५।।
अशोक सिंह 'सत्यवीर'
(पुस्तक - लो! आखिर आया मधुमास )
No comments:
Post a Comment